अब तो नींद से भी डर लगता है..
दिन भर की मक्कारियां बुनता मन, रात चादरों मे सलवटें डालता हुआ, ऊंघता, सिर झटकता ... बाल नोचता है....
एक कतरा नींद की मन्नतें मांगता ...मन.... जब तब सो भी जाता है / गीली तकियों मे मुंह छिपाए...
पर पाप अपना हिसाब मांगने वहाँ भी हाज़िर ....
दिन भर की मक्कारियां बुनता मन, रात चादरों मे सलवटें डालता हुआ, ऊंघता, सिर झटकता ... बाल नोचता है....
एक कतरा नींद की मन्नतें मांगता ...मन.... जब तब सो भी जाता है / गीली तकियों मे मुंह छिपाए...
पर पाप अपना हिसाब मांगने वहाँ भी हाज़िर ....
मन जाल मे फंसी मछली की तरह कसमसाता है और सपने हैं कि एक एक कर आते जाते हैं....
पुराने लोग.... आ खड़े होते हैं, चिढाते हुए... आतुरता बढाते हुए....
बचपन की खोई हुयी "ड्राइंग बुक" खुल जाती है .... एक टांग पर नाचता हुआ मोर... अल्हड हाथों से भरा हुआ भोथरा रंग... सितारों भरी फ्रोक पहन कर नाचती हुयी लड़की....
सपने मन को शार्पनर मे डाल कर पेंसिल सा उमेठते रहते हैं.... अतीत की परतें .. महीन सी छिलकों की तरह आस पास बिखरती जाती हैं....
तकिया .... भीग चुका तकिया .. कसमसाता रहता है भोर तक....
खिडकियों पर झांकती हुयी अंगूर की बेल पर दो नन्ही बुलबुलें कोई गीत गा रही हैं,
बीता हुआ गीत...
सूरज रोशनदानो से झांकता हुआ, मुंह पर ठहर सा गया है... सिरहाने चाय ठंडी हुयी जा रही...
मन है कि अभी भी नींद की दहशत मे हिचकियाँ भर रहा...
*amit anand
पुराने लोग.... आ खड़े होते हैं, चिढाते हुए... आतुरता बढाते हुए....
बचपन की खोई हुयी "ड्राइंग बुक" खुल जाती है .... एक टांग पर नाचता हुआ मोर... अल्हड हाथों से भरा हुआ भोथरा रंग... सितारों भरी फ्रोक पहन कर नाचती हुयी लड़की....
सपने मन को शार्पनर मे डाल कर पेंसिल सा उमेठते रहते हैं.... अतीत की परतें .. महीन सी छिलकों की तरह आस पास बिखरती जाती हैं....
तकिया .... भीग चुका तकिया .. कसमसाता रहता है भोर तक....
खिडकियों पर झांकती हुयी अंगूर की बेल पर दो नन्ही बुलबुलें कोई गीत गा रही हैं,
बीता हुआ गीत...
सूरज रोशनदानो से झांकता हुआ, मुंह पर ठहर सा गया है... सिरहाने चाय ठंडी हुयी जा रही...
मन है कि अभी भी नींद की दहशत मे हिचकियाँ भर रहा...
*amit anand
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