Thursday, July 22, 2010

खो चुका हूँ

चिप चिपाती उमसती
चिडचिडी दोपहरी में
सरपतों की फुनगियों से लगे
चीरे की तरह
तुम्हारी याद!!

अकारण!

चटकती ज़मीन
दरारों भरे खेत पर
आवारों बादलों के झुण्ड सी
तुम्हारी स्मृतियाँ!!

अर्थहीन!!

ऊब सी है
तुम्हारी याद
तुम्हे सोचना
अब "टाइम पास" लगता है,

मीत मेरे
मान लो
की-
तुम्हे अब
"खो चुका हूँ मैं"

*amit anand

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